मैं कुछ कहना चाहती हूँ।
मैं कुछ कहना चाहती हूँ, नहीं बाँटना मुझे मेरी वेदना को, यूँही उसे कोरे काग़ज पर लिखना चाहती हूँ। नहीं चाहत किसी बड़े सुकून की, पर उसे जीना चाहती हूँ। मैं कुछ सीखना चाहती हूँ, कि या यकीन दुनिया पर हर पल फिर भी, खुद को सहारा देना चाहती हूँ। अतीत वो, वक्त के साथ गुजर गया उसे अपने आज से दूर कहीं सहेजकर रखना चाहती हूँ। मैं कुछ कहना चाहती हूँ, अहसास दबाना नहीं जानती हूँ। नहीं करना चाहा जुल्म कभी किसी सितारे को झुकलाने का, मैं उड़ना जानती हूँ, पर उड़ते पंखों का आसमां बनना चाहती हूँ। मैं कुछ सीखना चाहती हूँ, फ़रियाद बहुत-सी है, ख़ुद को सजा के नाम करना चाहती हूँ। मुस्कुराहट गुम है किसी भँवरजाल में, गुत्थी महज एक छोटा-सा ख़्याल है, हर कदम पर ख़ुद से ही सवाल है इन्हें ख़ुद ही सुलझाना चाहती हूँ। मैं कुछ लिखना चाहती हूँ, एक वक्त पर कुछ अल्फ़ाज़ साथ थे उन्हें वापस बुलाना चाहती हूँ। तकदीर नहीं, बस अपनी मेहनत को आजमाना चाहती हूँ। समंदर की ऊँची लहरों में, अपने ढंग से बहना ...