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हाँ, वो एक लड़की है।

 वो नन्ही सी परी है, जिसने ऊंची उड़ान के सपने देखे  वो सावन की डाली है, जिसने झूमना चाहा मस्ती की बरसात में। वो खुशबू है उस बाग़ की, जिसे दुनिया की बातों ने बंजर बना कर ही दम लेना है।। इसमें गलती क्या होती है उसकी? जन्म लेती तो बोझ बन जाती है, अक्सर किसी गुमनाम कोने में उसकी धड़कन सुनने में आती है। वक्त नहीं लगता और वो नवजात मारी जाती है।। खुशहाल होती है जिन्हें जीने का उपहार मिल ही जाता है, पर कहीं न कहीं उन कदमों को अपने आंगन तक ही ठहरना पड़ता है। उसका गलियों से जाना कहां किसी को भाता है, गलती नहीं होती उसकी, फिर भी क्यों हैवान उसे निगल जाता है? एक बार फिर उसके सपनों का दम घोटा जाता है।। कुल का दीपक, माता - पिता के बुढ़ापे का सहारा बनना चाहती है वो, उन चार दीवारों को अपने नाम से रोशन करना चाहती है वो, पर उसकी विदाई में कहां कोई देर लगाता है, दहेज़ के नाम पर इंसानियत को हर बार तौला जाता है। आखिर एक अनमोल रत्न को उसकी कीमत का अहसास क्यों कराया जाता है? क्यों मारुति न मिलने पर जिंदा आग के हवाले कर दिया जाता है? एक सुबह खुशियों की लहर में समाती है वो, जब उसमें एक और जिंदगी बसने लगती है।